शनिवार, 6 सितंबर 2008
जोगी के शेर-19
१- यहाँ दहशत के, सब मौसम रखे हैं
जहाँ देखो वहीँ पर बम रखे हैं ।
२- सुकून-ओ-चैन-अमन, ख्वाब में होते होंगे
यहाँ तो हर तरफ़, दहशत दिखाई देती है ।
३- पूजा की थाल की जगह, मैयत पे पड़े हैं
सब फूल तितलियों के, गुनहगार हो गए ।
४- यां कौन है जो भूख, गरीबी को मिटाए
जादू की छड़ी चाहिए, हिंदोस्तान को ।
५- मज़हब बदल गया है, जज़्बात नहीं बदले
तारीख तो बदली है, हालात नहीं बदले ।
६- जिनकी आंखों पे, सियासत के लेंस होते हैं
कोई तस्वीर उन्हें, साफ़ नहीं दिखती है ।
७- हमारे क़त्ल में, मुंसिफ का हाथ शामिल है
हमारे हक में कभी, फैसला नहीं होगा ।
८- मैं अपने प्यार में, दोनों जहान दूँगा
ज़मीं तो क्या है, उसे आसमान दे दूँगा ।
९- न उन्हें राम से मतलब है, न अल्ला से गरज
जो लोग मन्दिर-ओ-मस्जिद, पे लड़ा करते हैं ।
१०- जो पाया है खून पसीने का पाया
अपने हाथ मुक़द्दर वाली रेख नहीं ।
डॉ. सुनील जोगी, दिल्ली, भारत
मोबाइल नं. - O9811005255
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शुक्रवार, 5 सितंबर 2008
जोगी के शेर-18
१- ज़माना अपना सर झुका के, दुआएं देता
आपने गर किसी, पत्थर को संवारा होता ।
२- हमारे दौर के लोगों का, हाल मत पूछो
ऐसे हंसते हैं कि, रो देने का जी करता है ।
३- मैंने ख़त लिखने यकीनन, इसलिए चालू किए
दिल की सब बातें, नहीं हो पातीं टेलीफोन पर ।
४- छुआ है जब से उस, हुस्न-ए-कली को
मैं भीतर तक, महकता जा रहा हूँ ।
५- मैकदे जाते हैं, न ढूँढते हैं पैमाने
पीने वाले तो निगाहों से भी, पी लेते हैं ।
६- जो जाल बिछाने वाले हैं, घोसला बनाना क्या जानें
सरकार बचानी आती है, इन्सान बचाना क्या जानें ।
७- सावन में अबकी इस तरह, बरसीं मुसीबतें
छत तक नहीं बची, मेरे कच्चे मकान की ।
८- धमाका क्यूँ नहीं होता है, कभी उनके घर
वो जो बमों की, नुमाइश लगाये बैठे हैं ।
९- हुआ है हादसा सब लोग, राहत लेके जाएंगे
चलो बच्चों को हम भी, कुछ खिलौने बाँट आते हैं ।
१०- जो गुल औ पत्तियां ना हों, शजर पूरा नहीं होता
बिना बच्चों के जैसे कोई, घर पूरा नहीं होता ।
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जोगी के शेर-17
जोगी के शेर
१- नफरतों से कोई तस्वीर, नहीं बनती है
मोहब्बत हो तो कई, ताजमहल बन जाएं ।
२- बादशाहों की दीवारों पे, सल्तनत होगी
हमें तो दिल पे हुकूमत का, हुनर आता है ।
३- अदालतें तो फ़क़त फैसला सुनाती हैं
वहां इंसाफ मिलेगा, ये ज़रूरी तो नहीं ।
४- जिसे जिरह सुन मुंसिफ ने, फांसी का हुकुम सुनाया हो
फांसी उसको न हो तो, तौहीन-ए-अदालत होती है ।
५- जनता कहती सरकारों में, सजे सिकंदर बैठे हैं
हर ऊँची कुर्सी पर, गाँधी जी के बंदर बैठे हैं ।
६- भीड़ तो मिलती है, इंसानियत नहीं मिलती
शहर के लोग तो बस, पत्थरों में रहते हैं ।
७- मेरी दुआ है आप, आसमान पर पहुंचें
मैं तो कतरा हूँ, नज़र में रहूँ, रहूँ न रहूँ ।
८- आप समंदर हैं करुणा के, थोड़ा प्यार मुझे भी देना
जब चाहूं तब दर्शन कर लूँ, ये अधिकार मुझे भी देना ।
९- मन्दिर समझ के आप के दर, आ तो गया हूँ
गर लौटना पड़ा तो, बहुत टूट जाऊंगा ।
१०- कर ली तो यार हमने, समंदर से दोस्ती
ता-उम्र मगर प्यास से, मरना पड़ा मुझे ।
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जोगी के शेर-16
१- जो था क़दमों में उसे, सर झुकाना पड़ता है
बहुत हैरान है, बुत को तराशने वाला.
२- यूँ तो बहुत बेकारियां हैं, अपने देश में
पर पूंछिये तो कहते हैं, कि काम बहुत हैं.
३- शाख से टूटने के बाद, कहा फूलों ने
अब मेरे पास में, तितली नहीं आने वाली.
४- कागजी फूलों में, खुशबू तो डाल सकते हो
मगर हुज़ूर तितलियाँ, कहाँ से लाओगे.
५- फूल खिलता है तो, खुशबू छुपा नहीं सकता
मोहब्बत वाली निगाहों में चमक रहती है.
६- सब खूबियाँ होंगी तो, बन जाएगा फ़रिश्ता
इन्सान में कुछ कमियाँ, होनी भी ज़रूरी हैं.
७- खुशबू न हो फूलों में तो, रंगों का क्या करें
आंखों में ख़्वाब ना हों, तो किस काम कि आँखें.
८- इस सियासत में तो, रिश्ते बदलते रहते हैं
आज दुश्मन है तो कल, दोस्त भी बन सकता है.
९- मज़बूत कलेजा हो तो, अखबार निकालो
अब खून से लिक्खी हुई, ख़बरों का चलन है.
१०- नादान ना समझो वो, पुराना रईश है
पैमाना भरा भी हो तो, छलकाता नहीं है.
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सोमवार, 25 अगस्त 2008
जोगी के शेर-15
वो भूत प्रेत के किस्से दिखाते रहते हैं.
२- ऊपर वाले तेरे सारे, पते ठिकाने जाली हैं
मैखानों में भीड़ लगी है, मन्दिर-मस्जिद खाली हैं.
३- बेकाम जान के मुझे ठुकरा तो रहे हो
जब वक्त पड़ेगा तो बहुत काम आऊंगा.
४- बस एक शबनम के, कतरे की आस है मुझको
अब मेरी प्यास, समंदर बुझा नहीं सकता.
५- अपनी मेहनत से ही, होती है तरक्की प्यारे
कामयाबी की कोई, सीढियाँ नहीं होतीं.
६- वैसे तो किसी चीज से इंकार नहीं है
लेकिन अगर है शर्त, तो फ़िर प्यार नहीं है.
७- सियासी लोगों में इंसानियत कहाँ होगी
कागजी फूलों में खुशबू नहीं देखी जाती.
८- तने तो यार बबूलों के तने रहते हैं
जितने फलदार पेड़ हैं, वो झुके रहते हैं.
९- जो भी अहसान हैं, सब करके भूल जाते हैं
दोस्तों में बही-खाते नहीं चला करते.
१0- अमीर लोग उन्हें, बद नज़र से ना देखें
हम गरीबों की, बेटियों को दुआ देते हैं.
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रविवार, 24 अगस्त 2008
जोगी के शेर-14
महगाई में इन आँखों में, दोनों नहीं रह सकते हैं.
२- टेलिविज़न ने जवां कर दिए बच्चे सारे
अब बुजुर्गों के बड़प्पन का भरम टूट गया.
३- आज इन्सान ने कुछ ऐसी तरक्की की है
मुस्कराता है तो, होठों से लहू आता है.
४- वक्त पड़ता है तो फ़िर, जान भी दी जाती है
इस मोहब्बत के, मायने नहीं पूंछे जाते.
५- जिधर भी देखिये, ताक़त का बोलबाला है
कौन कमज़ोर आदमी का साथ देता है.
६- बचपन को जवानी का, तलबगार देखकर
मैं डर रहा हूँ, वक्त की रफ़्तार देखकर.
७- आदमी क्या करे, उसकी कोई खता ही नहीं
हादसे कब कहाँ हो जाएं, ये पता ही नहीं.
८- संसद में देखा जब से, नेताओं का ईमान बिक गया
ऐसा लगता है कि जैसे, सारा हिन्दुस्तान बिक गया.
९- मुश्किलों से हार कर के बैठने वालो
ठोकरें इन्सान को चलना सिखाती हैं.
१०- शहर में अब नहीं मिलते, कहीं असली चेहरे
सब अपने-अपने मुखौटे, लगाये फिरते हैं.
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शनिवार, 23 अगस्त 2008
जोगी के शेर-13
जो अपने हैं उन्ही को खल रही है..
२- वही कदम, ही सफर, वही चलने वाले
सिर्फ़ मंजिल के रास्ते बदलते रहते हैं.
३- सबके दुःख दर्द में जो हँसता था
आईना देखकर बहुत रोया.
४- जो भी गम बाहर था मै, उस गम को अन्दर पी गया
प्यास इतनी थी की मैं, सारा समन्दर पी गया.
५- गम रुलाने को जो आते हैं मुस्कराता हूँ
मुश्किलें देख कर आसान हुआ जाता हूँ.
६- ऐसे मजलूम भी देखे हैं मेरी आंखों ने
भूखे बच्चों को चटाई पे सुला देते हैं.
७- जाने किस ख्वाब का डर है हमारी आँखों को
नींद की गोलियां खा के भी नहीं सोती हैं.
८- वादा किया था उसने कि आएंगे एक दिन
वो दिन नहीं आया है, ज़माना गुज़र गया.
९- कौन अच्छा है, नज़र बोल नहीं पाती है
ज़ुबां कहती है उसे देखना नहीं आता.
१०- लाल बत्ती से गरीबी को देखने वालो
रात को धूप का चश्मा नहीं पहना जाता.
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शुक्रवार, 22 अगस्त 2008
जोगी के शेर-12
बातों ही बातों में कितने, ताजमहल बन जाते हैं.
२- उसको शायद बहुत कुछ आता है
जो ये कहता है, कुछ नहीं आता.
३- पहले तो जाने कितने, दीवाने बना लिए
फ़िर मिलने न आने के, बहाने बना लिए.
४- क्या खूब अदा तुमको, अल्लाह ने बक्शी है
खामोश भी रहते हो, सब बोल भी देते हो.
५- आप बेशक मुझे बुरा कहिये
मगर ये बेरुखी नहीं अच्छी.
६- प्यार में कितने अफ़साने हैं, तुम भी जानो, हम भी जानें
मिलने की सौ तरकीबें हैं, न मिलने के लाख बहाने.
७- वहां इंसाफ मिलेगा, ये ज़रूरी तो नहीं
अदालतों में तो बस तारीख मिला करती है.
८- जादू की झप्पी होती तो
सब मुन्ना भाई हो जाते.
९- सब कुछ वहां होता है, पढ़ाई नहीं होती
कॉलेज का माहौल, बिगड़ने के लिए है.
१०- सहन बंटता है तो दिल में दरार पड़ती है
किसी के आँगन में, दीवार खड़ी मत करना.
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जोगी के शेर-11
जो भी मिलता है अपने, काम लेके आता है.
२- वो दुनिया में किसी से भी, मोहब्बत कर नहीं सकते
जो मिल लेने से पहले ही, जुदा होने से डरते हैं.
३- नदी तो क्या है, समंदर भी हार जाएगा
सियासी प्यास तो केवल, लहू से बुझती है.
४- कश्मीर मुल्क से कुछ यूँ, दूर हो गया है
फोड़ा था पहले अब तो, नासूर हो गया है.
५- चोट कितनी भी लगे, दर्द नहीं होता है
मुझे इस मुल्क की तबियत ख़राब लगती है.
६- न कुछ करने से डरते हैं, न कहने में झिझकते हैं
हमारे दौर के बच्चे, बड़े होने लगे शायद.
७- रात बिस्तर पे रोज़, थक के टूट जाते हैं
गरीब लोगों को सपने भी नहीं आते हैं.
८- करके अमीर-ए-शहर की बेटी से मोहब्बत
आँखों में टूटा कांच लिए फ़िर रहा हूँ मैं.
९- सच बतलाऊँ किस कारण से, भारत की बर्बादी है
सौ करोड़ को बच्चे पैदा करने की आज़ादी है.
१०- हम मुल्क की हालत पे, ए लब खोलते नहीं
और खोल भी देते हैं तो, सच बोलते नहीं.
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बुधवार, 20 अगस्त 2008
जोगी के शेर-10
उस माँ को माँ कहने का भी, वक्त नहीं है बच्चों पे.
२- कैसे गुलाम होगा फ़िर, ये मुल्क दोबारा
गाते हैं वन्दे मातरम फुटपाथ के बच्चे.
३- न जाने कौन सी साजिश, रची अंधेरों ने
आजकल के चराग, रौशनी से डरते हैं.
४- अपने ही भीतर है छुपा, खुशियों का खजाना
बाज़ार में इस चीज की, दूकान नहीं है.
५- न तो कोई रोजगार है, न पुरखों की थाती है
सिर्फ़ हौसले से ही चिडिया, दाना पानी पाती है.
६- मिट्टी, पानी, हवा, यहाँ की, हरदम बरकत लाएगी
बढती आबादी भारत की, बर्बादी करवाएगी.
७- खुशी आती है तो, चुपके से चली जाती है
दर्द आता है तो फ़िर चीखता चिल्लाता है.
८- होठों की हँसी देख के, करते हैं रस्क सब
दुनिया को दिल का दर्द, दिखाई नहीं देता.
९- अगर लहजे में सख्ती हो, तो अपने दूर होते हैं
हजारों आईनों को एक, पत्थर तोड़ देता है.
१०- बादशाहों को भले नींद न आती होगी
मगर मजदूर तो फुटपाथ पे सो जाते हैं.
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जोगी के शेर
जोगी के शेर -9
१- ये वो मोती हैं जो, ऊपर नहीं निकलते हैं
अपने ज़ख्मों को कुरेदो, तो शेर बनते हैं.
२- मुझको मालूम नहीं, तुमको पता हो शायद
किसी से प्यार का, इजहार कैसे करते हैं.
३- प्यार के नाम पे जो डरते हैं
अपनी सांसों पे ज़ुल्म करते हैं.
४- देख लेने से नशा होता है
उसकी ऑंखें शराब लगती हैं.
५- किसी को अपना बनने का, इरादा है मगर
कौन है जो मेरी सांसों की, खनक समझेगा.
६- बस यही सोचकर, इजहार नहीं करता मैं
उसने इंकार कर दिया अगर तो क्या होगा.
७- दिल की हालत बताया करता हूँ
आजकल शेर कौन कहता है.
८- आप मानें या न मानें ये दिल ने जाना है
हमारा आपसे रिश्ता बहुत पुराना है.
९- दिल के अहसास भला चिट्ठियों को क्या मालूम
हमारा प्यार तो बस धड़कनें समझती हैं.
१०- मैं तो जाने क्या क्या कह दूँ
पर वो पगली क्या समझेगी.
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शुक्रवार, 8 अगस्त 2008
जोगी के शेर- 8
अपने बारे में सोचते रहना.
२- बिना मौसम के भी इतनी बारिश
कोई तो होगा तो रोता होगा.
३- नकाब ओढ़ के आए हैं मेरी मैयत पे
अपनी रोती हुई आंखों को छुपाने के लिए.
४- दो चार दिन के मिलने मिलाने का सिलसिला
खुदगार्जियाँ ही होती हैं रिश्ते नहीं होते.
५- कामयाबी का तो चर्चा कहीं नहीं होता
मेरी नाकामियों का जिक्र सभी करते हैं.
६- साथी कोई मिला नहीं दुनिया की भीड़ में
ख़ुद अपने सफर पर मैं अकेला निकल पड़ा.
७- फकीरी से बड़ी दौलत नहीं होती कोई
ख्वाहिशें हों तो बादशाह गरीब होता है.
८- जिसे भी चाहो उसे दिल से मोहब्बत करना
प्यार के बदले में कीमत नहीं मांगी जाती.
९- कभी कभी छोटे दिल वाले बड़े बड़े दिल रखते हैं
बड़े बड़े घर वालों के दरवाजे छोटे होते हैं.
१0- नदी का क्या है जो चाहे, उसे जितना पी ले
एक चुल्लू भी समंदर नहीं पीने देता.
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गुरुवार, 7 अगस्त 2008
जोगी के शेर- 7
दिल जिसको चाहता था, वही क्यूँ नहीं मिला.
२- सफर लंबा है, मैं अकेला हूँ
हमसफ़र बन सको तो बन जाओ.
३- उसके ख्वाबों में इतना डूबा हूँ
खुली जो आँख तो मुश्किल होगी.
४- कड़वी बातों का बुरा लगता है
दुनिया चीनी पसंद लगती है.
५- सबको खुशियाँ दिखाई देती हैं
कोई भी ग़म का खरीदार नहीं.
६- रात भर करवटें बदलता हूँ
किसी से प्यार हो गया शायद.
७- मोहब्बत उसके दिल में रहती है
जहाँ नफरत का कोई काम नहीं.
८- मैंने माना कि वो समन्दर है
मेरे होठों की प्यास क्या जाने.
९- धड़कनों के लिए चाहत बहुत ज़रूरी है
बस यही सोच कर के, प्यार कर लिया मैंने.
१०- वो दरिया है समंदर में, उतर जाए तो अच्छा है
मोहब्बत जो नहीं करता, वो मर जाए तो अच्छा है.
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जोगी के शेर- 6
प्यार जब से हो गया, मैं सागरों सा भर गया.
२- ये तो मालूम नहीं कितना, प्यार करता हूँ
मगर मैं उसपे बड़ा, ऐतबार करता हूँ.
३- आपसे मिल के हमने ये जाना
जिंदगी पटरियों पे रहती है.
४- जिंदगी तेरी हकीकत मैंने
उसकी आंखों में डूबकर जानी.
५- मेरी उसकी तो मोहब्बत का, ये फ़साना है
ज़मी की खाक आसमां से दिल लगा बैठा.
६- वो एक दिन आकर के, गले मिल तो गए थे
इतनी सी मोहब्बत से, गुजारा नहीं होता.
७- शहर में नफरतों की कोठियां हैं
मोहब्बत दर-ब-दर सी घूमती है.
८- ज़माने में ग़म की बहुत आंधियां हैं
चरागों को थोडी हवा दीजियेगा.
९- जो मेरे दर्द देख, आंसुओं को पोंछ दे
सारे जहाँ में ऐसा, दुप्पट्टा नहीं मिलता.
१०- यूँ तो ख्वाबों में रोज आता है
वो हकीकत में क्यूँ नहीं आता.
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बुधवार, 6 अगस्त 2008
जोगी के शेर- 5
घर जलाने पे भी, अब रौशनी नहीं होती.
२- जहाँ खुशियाँ मिलें, दूकान भी नहीं मिलती
बिना कीमत के तो, मुस्कान भी नहीं मिलती.
३- यहाँ लिबास की कीमत लगायी जाती है
आदमी कितना बड़ा है, पता बताता है.
४- ख़ुद अपना ही वज़ूद, बचाने में लगी है
गंगा किसी के पाप को, धोएगी कहाँ से.
५- सियासी लोग तिरंगे को, भूल कर अब तो
बस अपने रंग के, झंडों से प्यार करते हैं.
६- बादशाहों ने फ़क़त, ताज बनाये होंगे
ग़रीब लोग मोहब्बत में, जान देते हैं.
७- आदमी आदमी नहीं है, भला क्या करिए
दोस्त देते हैं दगा, किसपे भरोसा करिए.
८- हम अपने दोस्तों पे, जां तो लुटाते हैं मगर
दुश्मनों की भी बहुत, खैर ख़बर रखते हैं.
९- वो शख्स जो बड़ा के भी, झुक के मिलता है
उसका कद नापने को, आसमां तरसता है.
१०- ये अलग बात है, वो शख्स घर में रहता है
मगर वज़ूद तो हरदम, सफर में रहता है.
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मंगलवार, 5 अगस्त 2008
जोगी के शेर- 4
हमारा साथ तो बस पांव के छालों ने दिया.
२- किसी का कौन भला, साथ निभाता है यहाँ
सब अपनी अपनी मंजिलें, तलाश करते हैं.
३- क्या बताएं तुम्हें, खुद्दारियों के मारे हैं
चाहते तो हैं मगर, मांगना नही आता.
४- दोस्त आने को हैं, इतना सुकून दे मौला
दुखाने के लिए, ज़ख्मों को खून दे मौला.
५- ये तो सच है कि मैं, भीतर से बहुत भोला हूँ
मगर हर शख्स की, चालाकियां समझता हूँ.
६- पहले आसान था, अब वक्त बहुत भारी है
दुश्मनी देख ली, अब दोस्तों कि बारी है.
७- आज उस शख्स की, खामोशियाँ बताती हैं
ज़ुबां वालों ने उसे, कितना सताया होगा.
८- भीड़ में किसकी नज़र, किसपे है ये क्या मालूम
हुज़ूर हम तो, तमाशा दिखने वाले हैं.
९- आपने छोड़ दिया, शाख के पत्ते की तरह
आंधियां साथ न होतीं, तो मैं कहाँ जाता.
१०- तमाम लोग खूबियों के, तलबगार मिले
बस एक हम हैं, खामियों से निभाने वाले.
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लेकिन कोई तो है, जो बिखरने नही देता.
२- वो शहर, वो गलियां, वो शामें, मुलाक़ातें
सब कुछ भुला चुका हूँ, मगर तुम नहीं भूले.
३- जब से हुज़ूर आप, हुकूमत में आ गए
तेवर बदल गए, हमें पहचानते नहीं.
४- हम कभी यूँ भी, उनसे इंतकाम लेते हैं
जलाने के लिए, हाथों में जाम लेते हैं.
५- अब पहले सा प्यार है, न वो अपनापन
जिन रिश्तों का बोझ, उठाये फिरते हैं.
६- उन्हें तो सिर्फ़ हुकूमत की, फिक्र रहती है
दोस्ती क्या है, सियासत के लोग क्या जाने.
७- सिर्फ़ ख़्वाबों से कुछ नहीं होता
हकीक़त पोल खोल खोल देती है.
८- न वो अदब है, न तहजीब, न खातिरदारी
जेब को देखकर बैरे सलाम करते हैं.
९- चैन से सोने का, आँखों ने ख़्वाब क्या देखा
बस उसी दिन से हमें, नींद ही नहीं आई.
१०- बस एक मैं ही अकेला, खड़ा हूँ महफ़िल में
सभी ने अपने अपने, हमसफ़र तलाश लिए.
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रविवार, 3 अगस्त 2008
जोगी के शेर
१- दुनिया वाले जिसे जन्नत का नाम देते हैं
वो तो माँ बाप के क़दमों के तले रहती है.
२- आदमी ऐसी तरक्की कर रहा है आजकल
बाहर हँसता और भीतर मर रहा है आजकल.
३- बाग़ से जिसके चहकने की सदा आती थी
बहुत दिनों से वो चिड़िया उदास रहती है.
४- प्यार के पंछी तक छत पर आने से डरते हैं
घर तो कम हैं बस्ती में दीवारें ज़्यादा हैं.
५- आसमानों की तरफ़ बढती तरक्की देखकर
चाँद सूरज आदमी से खौफ़ सा खाने लगे.
६- भला दुश्मन हमारा क्या करेंगे
मैं अपने दोस्तों से डर रहा हूँ.
७- वक्त अच्छा हो तो सबके सलाम आते हैं
बहुत कम लोग मुसीबत में काम आते हैं.
८- जो सच्चे लोग हैं अक्सर दुआओं को तरसते हैं
यहाँ फलदार पेड़ों पर सदा पत्थर बरसते हैं.
९- भला हो दोस्तों का लाज बचा ली वरना
दुश्मनों से तो दुश्मनी भी नहीं की जाती.
१०- डूब जाऊँ तो किनारे मुझे लगा देना
दोस्त साहिल पे खड़े हाथ हिलाते होंगे.
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जोगी के शेर
मगर हुज़ूर शायरी का हुनर रखते हैं.
1- यहाँ दहशत के सब मौसम रखे हैं
जहाँ देखो वहीँ पर बम रखे हैं.
2- सुकून-ओ-चैन-ओ अमन ख्वाब में होते होंगे
यहाँ तो हर तरफ़ दहशत दिखाई देती है.
3- पूजा के थाल की जगह मैयत पे पड़े हैं
सब फूल तितलियों के गुनहगार हो गए.
4- यां कौन है जो भूख गरीबी को मिटाए
जादू की छड़ी चाहिए हिन्दोस्तान को.
5- मज़हब बदल गया है जज़्बात नहीं बदले
तारीख तो बदली है हालात नहीं बदले.
6- जिनकी आंखों पे सियासत के लेंस होते हैं
कोई तस्वीर उन्हें साफ़ नहीं दिखती है.
7- बुलंदी के कैसे तराने सुनाएँ
सियासत का तबला बड़ा बेसुरा है.
8- ये न समझो की हर इक दोस्त दुआ देता है
चराग भी तो कभी घर को जला देता है.
9- अपनी बरबादियों का जब से हुआ है चर्चा
दोस्त भी आते हैं तो, बद्दुआएं देते हैं.
10- वो शख्स जिसने आसमां की बुलंदी छू ली
ज़मी पे चलता है तो सर झुका के चलता है.
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