बुधवार, 6 अगस्त 2008

जोगी के शेर- 5

१- मेरी तक़दीर में कुछ, इस कदर अंधेरे हैं
घर जलाने पे भी, अब रौशनी नहीं होती.

२- जहाँ खुशियाँ मिलें, दूकान भी नहीं मिलती
बिना कीमत के तो, मुस्कान भी नहीं मिलती.

३- यहाँ लिबास की कीमत लगायी जाती है
आदमी कितना बड़ा है, पता बताता है.

४- ख़ुद अपना ही वज़ूद, बचाने में लगी है
गंगा किसी के पाप को, धोएगी कहाँ से.

५- सियासी लोग तिरंगे को, भूल कर अब तो
बस अपने रंग के, झंडों से प्यार करते हैं.

६- बादशाहों ने फ़क़त, ताज बनाये होंगे
ग़रीब लोग मोहब्बत में, जान देते हैं.

७- आदमी आदमी नहीं है, भला क्या करिए
दोस्त देते हैं दगा, किसपे भरोसा करिए.

८- हम अपने दोस्तों पे, जां तो लुटाते हैं मगर
दुश्मनों की भी बहुत, खैर ख़बर रखते हैं.

९- वो शख्स जो बड़ा के भी, झुक के मिलता है
उसका कद नापने को, आसमां तरसता है.

१०- ये अलग बात है, वो शख्स घर में रहता है
मगर वज़ूद तो हरदम, सफर में रहता है.


DR. SUNIL JOGI, DELHI, INDIA
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