मंगलवार, 5 अगस्त 2008

जोगी के शेर- 4

१- राह में छोड़ के, तनहा ही दोस्त लौट गए
हमारा साथ तो बस पांव के छालों ने दिया.

२- किसी का कौन भला, साथ निभाता है यहाँ
सब अपनी अपनी मंजिलें, तलाश करते हैं.

३- क्या बताएं तुम्हें, खुद्दारियों के मारे हैं
चाहते तो हैं मगर, मांगना नही आता.

४- दोस्त आने को हैं, इतना सुकून दे मौला
दुखाने के लिए, ज़ख्मों को खून दे मौला.

५- ये तो सच है कि मैं, भीतर से बहुत भोला हूँ
मगर हर शख्स की, चालाकियां समझता हूँ.

६- पहले आसान था, अब वक्त बहुत भारी है
दुश्मनी देख ली, अब दोस्तों कि बारी है.

७- आज उस शख्स की, खामोशियाँ बताती हैं
ज़ुबां वालों ने उसे, कितना सताया होगा.

८- भीड़ में किसकी नज़र, किसपे है ये क्या मालूम
हुज़ूर हम तो, तमाशा दिखने वाले हैं.

९- आपने छोड़ दिया, शाख के पत्ते की तरह
आंधियां साथ न होतीं, तो मैं कहाँ जाता.

१०- तमाम लोग खूबियों के, तलबगार मिले
बस एक हम हैं, खामियों से निभाने वाले.

DR. SUNIL JOGI, DELHI, INDIA
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