शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

जोगी के शेर-11

१- कौन है जो यहाँ, रस्मे-वफ़ा निभाता है
जो भी मिलता है अपने, काम लेके आता है.

२- वो दुनिया में किसी से भी, मोहब्बत कर नहीं सकते
जो मिल लेने से पहले ही, जुदा होने से डरते हैं.

३- नदी तो क्या है, समंदर भी हार जाएगा
सियासी प्यास तो केवल, लहू से बुझती है.

४- कश्मीर मुल्क से कुछ यूँ, दूर हो गया है
फोड़ा था पहले अब तो, नासूर हो गया है.

५- चोट कितनी भी लगे, दर्द नहीं होता है
मुझे इस मुल्क की तबियत ख़राब लगती है.

६- न कुछ करने से डरते हैं, न कहने में झिझकते हैं
हमारे दौर के बच्चे, बड़े होने लगे शायद.

७- रात बिस्तर पे रोज़, थक के टूट जाते हैं
गरीब लोगों को सपने भी नहीं आते हैं.

८- करके अमीर-ए-शहर की बेटी से मोहब्बत
आँखों में टूटा कांच लिए फ़िर रहा हूँ मैं.

९- सच बतलाऊँ किस कारण से, भारत की बर्बादी है
सौ करोड़ को बच्चे पैदा करने की आज़ादी है.

१०- हम मुल्क की हालत पे, ए लब खोलते नहीं
और खोल भी देते हैं तो, सच बोलते नहीं.

DR. SUNIL JOGI, DELHI, INDIA
CONTACT ON - O9811005255
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